किसी चीज की अधिक मात्रा में उपलब्धता परेशानी का कारण बनती है, ऐसा ही कुछ जोधपुर के साथ हो रहा है। रेगिस्तान का सिंह द्वार कहलाने वाले जोधपुर के लोग सदियों तक पानी को तरसते रहे। इस कारण उन्होंने पानी को बहुत सहेज कर काम में लिया, लेकिन इंदिरा गांधी नहर के जरिये हिमालय का पानी मिलते ही लोगों ने अपने पुराने जलस्रोतों की उपेक्षा करना शुरू कर दी। इसकी नतीजा यह निकला कि पूरे देश में जहां गिरता हुआ भूजल स्तर सभी के लिए चिंता का विषय बना हुआ है वहीं जोधपुर शहर में लगातार बढ़ते भूजल स्तर ने दिक्कतें खड़ी कर दी है। शहर के अधिकांश हिस्सों में महज एक से तीन मीटर की गहराई पर अथाह भूजल भंडार उपलब्ध है। पूरा शहर पानी के ऊपर तैर रहा है।
पानी को सदियों तक तरसे है यहां के लोग
जोधपुर शहर सदियों तक महंत चिड़ियानाथ के शॉप से अभिशप्त रहे कि यहां पर पानी की किल्लत रहेगी। राव जोधा ने मेहरानगढ़ फोर्ट की नींव रखने के लिए वहां निर्मित मंहत चिड़ियानाथ की धूणी को हटा दिया था। इससे कुपित हो उन्होंने यह शॉप दिया था। पेयजल की भीषण किल्लत के बावजूद जोधपुर शहर बहुत बढ़ा। यहां के लोगों ने अपने होंसलों के दम पर बारिश की प्रत्येक बूंद को सहेजा और कई ऐसे निर्माण किए कि उनमें हमेशा पानी रहता।
हिमालय के पानी ने बदली तस्वीर
नब्बे के दशक की शुरुआत में जोधपुर में राजीव गांधी लिफ्ट नहर के जरिये हिमालय का पानी पहुंचना शुरू हो गया। सहजता से उपलब्ध हुए पानी ने लोगों की आदतें बदल डाली। उन्होंने पुराने जलस्रोतों की उपेक्षा करना शुरू कर दिया। वहीं नहरी पानी का उपयोग बहुत अधिक बढ़ा दिया।
तीन चौथाई पानी समाने लगा भूमि में
शहर में बढ़ते भूजल स्तर को लेकर आईआईटी रुड़की की एक टीम ने इसका विस्तृत अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि शहर में रोजाना 210 मिलियन लीटर पानी की रोजाना खपत हो रही है। इसमें से 50 मिलियन लीटर पानी ही शोधित हो रहा है। शेष पानी जमीन में समा रहा है। इस कारण चंद बरसों में ही भूजल स्तर बीस मीटर से ऊपर आकर महज तीन मीटर तक रह गया। वहीं शहर के कुछ हिस्सों में महज एक-दो फीट की खुदाई करने पर भूजल निकलना शुरू हो गया। यहीं कारण है कि जोधपुर शहर में बेसमेंट बनवाने पर पूरी तरह से रोक लगी है। पुराने बेसमेंट भी लोग बंद करवा रहे है, क्योकि उनमें हमेशा पानी भरा रहता है।
रिपोर्ट के सुझाव पर अमल जरुरी
केन्द्रीय ग्राउंड वाटर बोर्ड से हाल ही सेवानिवृत्त हुए वरिष्ठ वैज्ञानिक रामाकिशन चौधरी ने सबसे पहले शहर में बढ़ते भूजल के कारण खोज उसके निदान का तरीका सुझाया था। बरसों तक यह रिपोर्ट फाइलों में कोई रही। बाद में अन्य वैज्ञानिकों ने भी इस पर अपनी सहमति जताई। नहरी पानी आने से पहले शहर में 200 नलकूप व 2000 से अधिक हैंडपंप थे। नहरी पानी आने के बाद इन सभी का उपयोग यकायक बंद हो गया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि इन नलकूपों को काम में लेकर इससे निकला पानी इंडस्ट्रीज को दिया जाए। इसके लिए रीको ने 24 करोड़ की योजना भी तैयार की, लेकिन योजना सिरे नहीं चढ़ पाई।
धीरे-धीरे लागू की योजना
लगातार भूजल स्तर बढ़ने के पश्चात राज्य सरकार ने शहर के नलकूपों को काम में लेना शुरू किया। शुरू में कुछेक नलकूप काम में लिए गए। इनसे भूजल दोहन के नतीजे बेहद सकारात्मक रहे। इस पर शहर में करीब 90 नलकूप से पानी लेने का काम शुरू किया गया, लेकिन ये नलकूप भी अव्यवस्था का शिकार हो गए। अधिकांश नलकूप से पानी का दोहन ठेके पर दिया हुआ है। ऐसे में ये नलकूप तय समय तक चलते ही नहीं है। साथ ही अधिकांश नलकूप का पानी निकाल कर नालियों में बहाया गया। इस कारण वह वापस भूमि में जाता रहता है।
यह है समाधान
चौधरी का कहना है कि सरकार को गंभीरता के साथ भूजल का दोहन कर इंडस्ट्रीज को देने की योजना पर काम शुरू करना चाहिये। इससे इंडस्ट्रीज को नहरी पानी नहीं देना पड़ेगा। वहीं भूजल का बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा। ऐसा करने से ही शहर के भूजल स्तर को थामा जा सकता है।